रॉकस्टार: ‘जो हमारे अंदर कहीं रहता है’
आज रॉकस्टार फिल्म देखी। फिल्म पुरानी है मगर एक मित्र ने अनुशंसा की तो देखने की वाजिब वजह मिल गई। सबसे पहले तो उस दोस्त का आभार जिसनें एक खूबसूरत फिल्म का हिस्सा बनने के लिए मुझे प्रेरित किया। यह फिल्म मुझसे छूट गई थी इसका अब मुझे मलाल हुआ है। आज फिल्म पर समीक्षा जैसा कुछ नही लिखूंगा बस फिल्म के जरिए खुद के अहसास के खुले पोस्टकार्ड बेनामी पतों पर लिखने और भेजने का मन है। रॉकस्टार एक ऐसे रुहानी किरदार की कहानी है जो हमारे अन्दर ही बसता है खुद से खुद की रिहाई और खुद को खुद के अक्स से देखने की फुरसत ये कमबख्त दुनिया कब देती है और फिल्म इसी ही हिमायत करती है। निजी तौर पर मेरी जो संगीत की समझ कहती है रॉक बैचेनियों का संगीत है। रॉक म्यूजिक रुह की बैचेनियों का लाउड साउंड के जरिए कैथारसिस है वो हमारी बंदिशों को तोडकर हमे आजाद होने की ख्वाहिश का आसमान देता है। रॉकस्टार दरअसल एक ऐसी ही दुनिया की कहानी है जो हम सबके अन्दर एक अमूर्त रुप में बनती बिगडी रहती है। ये भी सच बात है कि कम ही लोग जेजे ( जॉर्डन) की तरह उस अहसास को पहचान पाते है जो दर्द के लिफाफे में अक्सर बैरंग खत की शक्ल में हमारे तकिए के नीचे सिरहारने रखा मिलता है और हम अक्सर करवट बदल सो जाते है। जॉर्डन और हीर दरअसल दो किरदार नही है बल्कि मै उनको किरदार से आगे बढकर दो उन्मुक्त चेतनाएं कहूंगा जो एक दूसरे पर आश्रित भी है और एकदूसरे को जानने समझने की यात्रा पर भी है।फिल्म में नायक और नायिका का आपसी भरोसे का मेआर भी बहुत ऊंचा है जिससे हौसला मिलता है। फिल्म का एक अपना महीन सूक्ष्म मनोविज्ञान है रॉकस्टार फिल्म एक ‘विचित्र अहसास’ को परिभाषित करती है उसके जिन्दगी मे देर सबेर दस्तक होने पर उसके बाद के जिन्दगी मे आये बदलाव को एक नए नजरिए से देखने का जज्बा देती है। फिल्म में मैत्री और प्रेम से इतर भी एक अपरिभाषित रिश्तें की व्यापकता और उसको स्वीकार कर जीने की कहानी भी है। जॉर्डन ( रणवीर कपूर) और हीर ( नरगिस फाखरी) दोनो की सहजता प्रभावित करती है दोनो की प्रयोगधर्मिता आरम्भ मानवीय सम्बंधो को देहातीत होने की सम्भावना को भी पल्लवित करती है। निसन्देह स्त्री पुरुष सम्बंधों मे देह एक मनोवैज्ञानिक सच है यह एक लौकिक तत्व है इसके अलावा पूरी फिल्म में इशक में दरगाह की रुहानियत है बैचेनियों के आलाप है। फिल्म में म्यूजिक लोबान की तरह जलता है और रुह को सुकून अता करता है पूरी फिल्म में एक खास किस्म का अधूरापन भी प्रोजेक्ट किया है जो एक Abstract Emotion के रुप में उपस्थित रहता है।
दरअसल,फिल्म इश्क के जरिए खुद के रुह की बैचेनियों को रफू करने की एक ईमानदार कोशिस है जो इसकी फिक्र नही करती है कि क्या दुनियावी लिहाज़ से ठीक है और क्या गलत है। एक पाक इश्क के ज़ज़्बात को फिल्म एक बिखरी हुई कहानी में पिरोती है और उसी के जरिए दिल की बीमारी का ईलाज़ करती है। फिल्म को देखते हुए खुद का दिल कई बार बेहद तेज धडकने लगता है जिसका एक ही मतलब है कि बात सीधे तक दस्तक दे रही है। दिल का टूटना और दर्द को महसूस करना किसी भी फनकार के लिए जरुरी है फिल्म इसी के सहारे आगे बढती है मगर इस दर्द की कीमत सच में बहुत बडी है यकीनन इश्क का मरहम उसकी मरहम पट्टी जरुर कर सकता है मगर कमबख्त ! इस मतलबी दुनिया न हीर जैसी माशूका मिलती है और न जॉर्डन जैसा आशिक।रॉकस्टार हम सबके अन्दर दबे एक ऐसे वजूद को से हमें मिलवाती है जो सही गलत के भेद मे नही पडना चाहता बस मुक्त हो जीना चाहता है कुछ मासूम अहसासो के जरिए दुनियादारी के लिहाज़ से वो गंद मचाना चाहता है मगर ये गंद मासूम बदमाशियों से शुरु हो रुहों के मिलन पर जाकर खत्म होती है। इतनी हिम्मत जब रब अता करता है तब एक ऐसी दुनिया का हिस्सा हम खुद ब खुद बन जाते है जो इश्क के वलियों की दुनिया है जहां हमारी रुह अपने बिछडे अहसासों से मिलकर थोडी देर के लिए एक रुहानी जश्न मे खो जाती है। ये फिल्म सच में सूफियाना फिल्म है जो हमे खुद के करीब ले आती है भले घंटे दो घंटे के लिए ही सही।
आज रॉकस्टार फिल्म देखी। फिल्म पुरानी है मगर एक मित्र ने अनुशंसा की तो देखने की वाजिब वजह मिल गई। सबसे पहले तो उस दोस्त का आभार जिसनें एक खूबसूरत फिल्म का हिस्सा बनने के लिए मुझे प्रेरित किया। यह फिल्म मुझसे छूट गई थी इसका अब मुझे मलाल हुआ है। आज फिल्म पर समीक्षा जैसा कुछ नही लिखूंगा बस फिल्म के जरिए खुद के अहसास के खुले पोस्टकार्ड बेनामी पतों पर लिखने और भेजने का मन है। रॉकस्टार एक ऐसे रुहानी किरदार की कहानी है जो हमारे अन्दर ही बसता है खुद से खुद की रिहाई और खुद को खुद के अक्स से देखने की फुरसत ये कमबख्त दुनिया कब देती है और फिल्म इसी ही हिमायत करती है। निजी तौर पर मेरी जो संगीत की समझ कहती है रॉक बैचेनियों का संगीत है। रॉक म्यूजिक रुह की बैचेनियों का लाउड साउंड के जरिए कैथारसिस है वो हमारी बंदिशों को तोडकर हमे आजाद होने की ख्वाहिश का आसमान देता है। रॉकस्टार दरअसल एक ऐसी ही दुनिया की कहानी है जो हम सबके अन्दर एक अमूर्त रुप में बनती बिगडी रहती है। ये भी सच बात है कि कम ही लोग जेजे ( जॉर्डन) की तरह उस अहसास को पहचान पाते है जो दर्द के लिफाफे में अक्सर बैरंग खत की शक्ल में हमारे तकिए के नीचे सिरहारने रखा मिलता है और हम अक्सर करवट बदल सो जाते है। जॉर्डन और हीर दरअसल दो किरदार नही है बल्कि मै उनको किरदार से आगे बढकर दो उन्मुक्त चेतनाएं कहूंगा जो एक दूसरे पर आश्रित भी है और एकदूसरे को जानने समझने की यात्रा पर भी है।फिल्म में नायक और नायिका का आपसी भरोसे का मेआर भी बहुत ऊंचा है जिससे हौसला मिलता है। फिल्म का एक अपना महीन सूक्ष्म मनोविज्ञान है रॉकस्टार फिल्म एक ‘विचित्र अहसास’ को परिभाषित करती है उसके जिन्दगी मे देर सबेर दस्तक होने पर उसके बाद के जिन्दगी मे आये बदलाव को एक नए नजरिए से देखने का जज्बा देती है। फिल्म में मैत्री और प्रेम से इतर भी एक अपरिभाषित रिश्तें की व्यापकता और उसको स्वीकार कर जीने की कहानी भी है। जॉर्डन ( रणवीर कपूर) और हीर ( नरगिस फाखरी) दोनो की सहजता प्रभावित करती है दोनो की प्रयोगधर्मिता आरम्भ मानवीय सम्बंधो को देहातीत होने की सम्भावना को भी पल्लवित करती है। निसन्देह स्त्री पुरुष सम्बंधों मे देह एक मनोवैज्ञानिक सच है यह एक लौकिक तत्व है इसके अलावा पूरी फिल्म में इशक में दरगाह की रुहानियत है बैचेनियों के आलाप है। फिल्म में म्यूजिक लोबान की तरह जलता है और रुह को सुकून अता करता है पूरी फिल्म में एक खास किस्म का अधूरापन भी प्रोजेक्ट किया है जो एक Abstract Emotion के रुप में उपस्थित रहता है।
दरअसल,फिल्म इश्क के जरिए खुद के रुह की बैचेनियों को रफू करने की एक ईमानदार कोशिस है जो इसकी फिक्र नही करती है कि क्या दुनियावी लिहाज़ से ठीक है और क्या गलत है। एक पाक इश्क के ज़ज़्बात को फिल्म एक बिखरी हुई कहानी में पिरोती है और उसी के जरिए दिल की बीमारी का ईलाज़ करती है। फिल्म को देखते हुए खुद का दिल कई बार बेहद तेज धडकने लगता है जिसका एक ही मतलब है कि बात सीधे तक दस्तक दे रही है। दिल का टूटना और दर्द को महसूस करना किसी भी फनकार के लिए जरुरी है फिल्म इसी के सहारे आगे बढती है मगर इस दर्द की कीमत सच में बहुत बडी है यकीनन इश्क का मरहम उसकी मरहम पट्टी जरुर कर सकता है मगर कमबख्त ! इस मतलबी दुनिया न हीर जैसी माशूका मिलती है और न जॉर्डन जैसा आशिक।रॉकस्टार हम सबके अन्दर दबे एक ऐसे वजूद को से हमें मिलवाती है जो सही गलत के भेद मे नही पडना चाहता बस मुक्त हो जीना चाहता है कुछ मासूम अहसासो के जरिए दुनियादारी के लिहाज़ से वो गंद मचाना चाहता है मगर ये गंद मासूम बदमाशियों से शुरु हो रुहों के मिलन पर जाकर खत्म होती है। इतनी हिम्मत जब रब अता करता है तब एक ऐसी दुनिया का हिस्सा हम खुद ब खुद बन जाते है जो इश्क के वलियों की दुनिया है जहां हमारी रुह अपने बिछडे अहसासों से मिलकर थोडी देर के लिए एक रुहानी जश्न मे खो जाती है। ये फिल्म सच में सूफियाना फिल्म है जो हमे खुद के करीब ले आती है भले घंटे दो घंटे के लिए ही सही।
लाजवाब
ReplyDelete