Sunday, March 1, 2015

‘हाईवे’

संडे मे दोपहर तक एक अकादमिक काम किया उसके बाद फिर अचानक से फिल्म देखने का मूड बन गया समानांतर रुप से दो मित्रो को साथ चलने का निमंत्रण एसएमएस से भेजा लेकिन संयोग से दोनों की ही अपनी-अपनी वाजिब मजबूरी थी उसके बाद अपने एक और दूसरे मित्र डॉ अनिल सैनी को उनके घर के बाहर पहूंच कर सूचना दी कि फिल्म देखने चलना है ताकि वहाँ ना की गुंजाईश न बचे वो बेचारे दोपहर की खाने के बाद की नींद के आगोश में थे लेकिन मै साधिकार आग्रह को ठुकरा न सके उन्होने पन्द्रह मिनट का समय लिया और तैयार होकर मेरे साथ हो लिए हरिद्वार में अधिकांश फिल्में हम साथ ही देखते है।
बहरहाल, ‘हाईवे’ दो भिन्न परिस्थितियों से निकल कर जाए लोगो का एक दिलचस्प सफर की कहानी है उनमे से एक पेशेवर अपराधी है और दूसरी अमीर बाप की बेटी। दो अलग-अलग पृष्टभूमि के लोगो का क्या बेहतरीन रिश्ता विकसित हो जाता है यही फिल्म का मूल कथानक है यह परिस्थिति से सफर पर निकले दो लोगो की कहानी है जिनका जितना सफर उनके साथ चलता है उतना ही उनके अतीत का सफर वो करके आए होते है फिल्म के नायक रणदीप हुड्डा( महावीर भाटी) एनसीआर के आसपास के गांव के एक गुर्जर युवा है जो अपराधी है और फिल्म की नायिका आलिया भट्ट (वीरा त्रिपाठी) एक अमीर बाप की बेटी है जिसका अपहरण महावीर भाटी कर लेता है फिर शुरु होता है उनके साथ का सफर और यह सफर निसन्देह मुझे तो बेहद रोचक लगा।
एक अमीरियत तो दूसरा गरीबी की जद में अपना अपना भोगा हुआ यथार्थ इतनी खुबसूरती से परदे पर जीवंत कर देते है कि मन द्रवित हुए बिना नही रह पाता है फिल्म में बाल यौन शोषण जैसे गंभीर और सम्वेदनशील विषयों को छुआ है इसके लिए इम्तियाज़ अली बधाई के पात्र है। विभिन्न संचार माध्यमों में फिल्म की समीक्षा तो कोई खास अच्छी नही थी लेकिन फिर भी मै इम्तियाज़ अली की वजह से ही फिल्म देखने गया कई बार आपका विश्वास किसी दूसरे के मत से बडा हो जाता है और मुझे खुशी है कि मै निराश नही हुआ।
अभिनय के लिहाज़ से रणदीप हुड्डा ने क्लासिक अभिनय किया एनसीआर मे गुर्जरों की बोली में डॉयलाग बेहद स्वाभाविक और जानदार लगे है वो महावीर भाटी के किरदार मे घुस गए है ठीक इसी तरह वीरा के किरदार मे आलिया भट्ट ने गजब का अभिनय किया है आलिया की यूएसपी उनकी मासूमियत है वो पूरी फिल्म में बेहद मासूम नजर आयी आलिया नें रोने और चीखने के कई दृश्यों में चमत्कारिक परफ़ॉरमेंस दी है निजि तौर पर थियेटर मे मै एक बात को लेकर असहज़ रहा है आलिया भट्ट कें रोने के इंटेस सीन में उनके नाक के दोनो नथुने तेजी से सिकुड और फैल रहे थे जिनका वास्तविक प्रभाव बेहद गजब का था लेकिन कुछ शहरी लोग उसमे भी हास्य निकाल कर फूहडता से हंस रहे थे एक बार मन हुआ कि उन्हे टोक दूं लेकिन थियेटर में एक दर्जन भर लोग होंगे ऐसे मे किस-किस से भिडता लेकिन समूह का ऐसा व्यवहार यह बताता है कि हम कितने संवेदनहीन हो गए है एक घनीभूत पीडा और रोने के दृश्य में लोग उस भाव को ग्रहण करने की बजाए नाक के नथुनों के खुलने-बंद होने पर ठहाके मार कर हंस रहे थे। आलिया के रोने के सीन वास्तव में बेहद मार्मिक है लेकिन शायद लोग सिनेमा हॉल में अपना भावनात्मक विरेचन करने की बजाए पैसा वसूलने की वजह से अधिक जाते है इसलिए उनका कुछ भी करना जायज़ है यह अपनी अपनी संवेदना का मसला है।
कुल मिलाकर हाईवे एक मध्यम गति की फिल्म है जिन्हे जल्दबाजी नही है और जो अच्छी लोकेशनस देखकर आंखो से लेकर दिल तक अच्छा महसूस करते है जो इमोशन को समझना और जीना  चाहते है उनके लिए यह फिल्म देखने लायक है फिल्म की स्टोरी दो अलग-अलग पृष्टभूमि के लोगो के साथ सफर पर निकलने,दिल मिलनें और बिछडने की कहानी है फिल्म का अंत थोडा असहज़ करने वाला है लेकिन इसके अलावा और अंत भी क्या हो सकता था। हाईवे में सहायक कलाकारों का भी अच्छा अभिनय है नाम याद नही आ रहा है लेकिन महावीर के हेल्पर बने ‘आडू’ नें फिल्म में अच्छा काम किया है खासकर उसका आलिया भट्ट के साथ अंग्रेजी गाने पर ठुमके लगाने का सीन अच्छा बन पडा है।
हाईवे आपको तभी पसन्द आएगी यदि आप खुद से लडते हुए किसी अंजान सफर पर कभी निकले है या निकलना चाहते है सफर आपकी आंतरिक जडता को तोडता है साथ ही यह आपकी निर्णय लेने की क्षमता को भी मजबूत करता है जिसमे ह्र्दय परिवर्तन से लेकर जिन्दगी जीने का मकसद सब शामिल है। फिल्म का संगीत ठीक है ए आर रहमान का एक ही गीत जबान पर चढने वाला है बोल फिलहाल याद नही आ रहे है।  

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