Wednesday, July 1, 2015

हमारी अधूरी कहानी


हमारी अधूरी कहानी :

इस फिल्म को आधी अधूरी कहानी के सहारे प्रेम की पवित्रता को कहने समझने या दिखाने की एक कोशिस कहा जा सकता है. फिल्म कुछ कुछ टुकड़ो में अच्छी लगती है तो कुछ जगह जाकर उलझी हुई लगने लगती है.फिल्म को लेकर  मोहित सूरी खुद ही उलझे हुए लगते है ऐसे में बतौर निर्देशक वो ठीक ढंग से बता नही पाये कि प्यार को जीने के लिए दिल कि सुननी पड़ती है. अमूर्त रूप से प्रेम इतना व्यापक विषय है कि इस पर कोई एक टीका पूरी कही भी नही जा सकती है. फिल्म में वसुधा (विद्या बालन) केंद्रीय भूमिका है मगर उनके किरदार को इतना डिप्रेसिव गढ़ा गया है कि वो फिल्म में थकी हुई और बेहद निस्तेज नजर आई है हालांकि उनकी एक्टिंग बहुत बढ़िया है  मेरे हिसाब से दूसरी बड़ी भूल फिल्म में उनके अपोजिट इमरान हाशमी का होना है इमरान हाशमी इस तरह के किरदार के साथ न्याय नही कर पाते है उनका अलग किस्म का दर्शक वर्ग भले ही हो मगर इस फिल्म थोड़ा और गहरा अभिनेता चुनना चाहिए था फिल्म में मुझे उनका न रोना और न हंसना ही प्रभावशाली लगा उनकी डायलोग डिलिवरी भी बेहद कमजोर है. फिल्म में विद्या के पति का किरदार निभा रहे है राजकुमार  राव का काम जरूर बढ़िया लगा मुझे वो नेचुरल एक्टर है मगर इंटरवल तक दर्शक यह तय नही कर पाता है कि उनके चरित्र को किस रूप में एक्सेप्ट करें.
फिल्म में दो गाने जरूर दमदार है एक टाइटल सांग है तथा दूसरा एक कव्वाली कि टोन लिए एक सैड सांग है मेरे लिए ये दोनों गाने देखकर ही फिल्म के पैसे वसूल हो गए है.
हमारी अधूरी कहानी दरअसल खुद को  रूह कि रौशनी को महसूस करने और उसके मुताबिक अपनी ज़िंदगी जीने का फलसफा सिखाती फिल्म है साथ ही बड़ी साफगोई से यह भी बताती है कि सच्ची प्रेम कहानियाँ अक्सर अधूरी ही रहती है शायद उनकी पूर्णता लोक से परे की चीज़ है. पारिवारिक दबाव और थोपे गए संस्कारो कि जकड़न में खुद को स्वाहा करने से बेहतर कि जिंदगी को नई रोशनी से जीने की कोशिस की जाए. फिल्म का एक डायलोग बढ़िया है कि हम किसी दुसरे को तभी प्यार कर पाते है जब हम खुद से प्यार करना छोड देते है यही फिल्म का सेंट्रल आईडिया भी है. किसी का गम बाँट लीजिये उसके बाद आप अपने आसपास बिखरे प्यार को खुद महसूस करने लगेंगे.
हमारी अधूरी कहानी उन लोगो को जरूर देखनी चाहिए जो नियतिवादी होकर कथित रूप से  जीने का कौशल सीख गए है मगर फिर भी अक्सर शिकायत करते पाये जाते है इस फिल्म को देखकर दिल कि सुनने और दिल के मुताबिक़ जीने का हौसला जरूर हासिल होगा. अधूरापन मनुष्य के अस्तित्व का अनिवार्य हिस्सा है मगर यदि आप जिंदगी के किसी मोड़ पर खुशबु को देख ठहर जाए या किसी पल में जीने लगे तो समझिए कि उस अधूरेपन का एक टुकड़ा अपना एकांत भरने के लिए आपकी एक प्यार भरी नजर के इंतज़ार में है.
फिल्म का अंत दुखांत दिखता जरूर है मगर सच में अधूरी प्रेम कहानियों का वो सच्चा सुखान्त है.
बहुत नैतिकता सही गलत कि मुक़दमे में फंसे लोगो को यह फिल्म एक जिरह के बाद रिहाई के नुक्ते सीखा सकती है साथ ही कुछ लोग जानते समझते हुए भी इसे नजरअंदाज कर सकते है क्योंकि ये उस दुनिया का किस्सा सुनाती है जहां जाने का दिल तो सबका करता है मगर दिमाग अक्सर हाथ पकड़ रोक लेता है.
और अंत में फिल्म में पुलिस अफसर पाटिल के रूप में नरेंद्र झा के काम कि तारीफ़ भी बनती है उनका रोल छोटा है मगर बढ़िया काम किया है.