Friday, August 4, 2017

जब हैरी मेट सेजल

जब हैरी मेट सेजल
_
‘ जिस मुलाकत में कोई किसी से नही मिलता’

इम्तियाज़ अली मेरे प्रिय निर्देशकों में से एक है अभी तक उनकी फिल्मों ने निराश नही किया था, मगर जब हैरी मेट सजल को देखकर मुझे थोड़ी निराशा हुई है. थोड़ी इसलिए कह रहा हूँ कि इम्तियाज़ की पुरानी फ़िल्में मुझे अधिक निर्मम होने की छूट नही दे रही है. इसे एक दर्शक और बढिया निर्देशक का रिश्ता समझा जा सकता है. आज यह फिल्म  देखने के लिए  दो सौ बीस रुपए का टिकिट लिया मगर पूरी फिल्म के दौरान मुझे ऐसा लगता रहा कि यह फिल्म क्यों देख रहा हूँ मैं.
जिंदगी में इमोशंस बहुत आम से चीज़ है मगर  इमोशंस का सिनेमेटिक प्रजेंटेशन बेहद मुश्किल काम है इस फिल्म में यह तय करना मुश्किल है कि कौन किस चीज़ से भाग रहा है.  हैरी और सजल की मुलाक़ात और गहरी और मीठी हो सकती थी उनका सफर और रोमाचंक हो सकता था मगर दोनों की मुलाक़ात बतौर दर्शक मेरे मन में कोई कौतूहल नही जगा पायी.
शाहरुख को अब यह मान लेना चाहिए कि उनकी उम्र हैरी बनने की नही है वो लाख फिट दिखतें हो मगर उनके चेहरे से उम्र के अपने तकाजे नज़र आने लगे है. मैं उन्हें अब डियर जिंदगी के साइकोथेरेपिस्ट जैसे रोल में देखना चाहता हूँ. इस फिल्म में अनुष्का उन पर थोड़ी भारी पडी है मगर अनुष्का के लिए भी बहुत ज्यादा काम फिल्म में बचा नही था.
फिल्म में बढ़िया लोकेशंस है यूरोप का नक्शा है और वहां की गलियां है मगर उस नक़्शे के सहारे उन गलियों में घुमते हुए हैरी और सजल मुझे बेमेल नजर आए. शाहरुख  पंजाबी एक्सेंट में कभी कभी कुछ  डायलोग बोलते है मगर उसके लिए एक्सेंट रियल करने की उनकी वोकल मेहनत कुछ ऐसी साउंड निकालती है कि हमें समझ ही नही आता है कि वो क्या कह रहें है.
दिल और वजूद की जद्दोजहद में अक्सर आदमी दिल की ही सुनता है और ताउम्र खुद से भागता रहता है इसी भागदौड़ में उसकी मुलाक़ात कुछ ऐसे लोगो से होती है  जिनके साथ अपने लम्हें शेयर करने का अफ़सोस नही  होता है बल्कि खुशी मिलती है ये लम्हें हमारी पकड से छूटे हुए कुछ पवित्र किस्म के अहसास होते है जिसको जीने के लिए आदमी खुद को दांव पर लगाने से भी नही चूकता है. प्यार इसी दांव की छाँव में पलता है . यह फिल्म हमें एक अनजानी मुलाकात के सुखद अहसास दिखाने के लिए बुनी गयी थी मगर इस बुनावट में कसावट की अच्छी खासी कमी है इसलिए जब आप इस मुलाक़ात के सहारे अपने अतीत या भविष्य में झूलना चाहते है तो आपको लगता है ये झूला तो एक कमजोर शाख पर डाला गया है चूंकि मुझे इम्तियाज़ से मुहब्बत थी इसलिए मैं इस झूले को अकेले ही खींच कर झूलने के लिए छोड़ आया इसके बदलें मुझे कुछ अच्छी लोकेशन के हवा और एकाध गाने नसीब हुए जिन्हें मैं गुनगुना तो नही सकता मगर तब मैं उनको सुनते हुए थियेटर में अपने व्हाट्स एप्प के मैसेज जरुर चेक कर सकता था.
 जब हैरी मेट सेजल  में  शाहरुख की फाइटिंग और वोकल होने के कुछ सीन अवांछित है इसके अलावा पुर्तगाल के एक सीन में मुझे वो गाना गाता हुआ भी अजीब लगा. अनुष्का इस फिल्म में एक गुजराती लड़की बनी है गुजराती एक्सेंट में उसको सुनना एक अच्छा अनुभव हुआ और फिल्म देखकर मुझे लगा गुजराती लडकियां शायद ज्यादा खुले दिमाग की होती है हालाँकि फिल्म से राय क्या बनानी.
जब हैरी मेट सेजल में सजल की एक अंगूठी खो गयी है उसको तलाशने में फिल्म अपनी यात्रा पूरी करती है मगर मूलत: फिल्म अपने अन्दर की सच्ची खोज और उससे मिलने ख़ुशी से हमें मिलवाना चाहती है हम खुद से भागते हुए खुद की असली चाहत हो भूल जाते है और जिस दिन हमारी चाहत हमारे सामने होती है हम यह तय नही कर पातें कि उसे किस तरह से सहज सकें. जब हैरी मेट सेजल  देखतें हुए यह बात आपको खुद सीखनी पड़ती है क्योंकि फिल्म खुद ही खुद के अन्दर उलझ कर रह गई है.
और अंत में, मुझे फिल्म का एक सीन और डायलोग जरुर पसंद आया जब सेजल हैरी से कहती है कि क्या तुम कल के टिकिट बुक कर सकते हो इस पर हैरी जवाब देता है यस मैंम !
सामान्य  सा डायलोग है मगर मुझे क्यों पसंद आया इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी. इम्तियाज़ की इतनी बढ़िया फिल्में हमने देखी है उसी उधार के बदले उनकी यह एक औसत फिल्म भी देखा जा सकती है.

© डॉ. अजित