Monday, January 11, 2016

बाजीराव मस्तानी

'बाजीराव मस्तानी' दिल के तहखाने में एक ऐसी सुलगती चिंगारी रख देती है जिसका धुंआ बहुत धीरे धीरे रिसता है मगर जब एक बार इश्क का लोबान जल उठता है तो दिल की हर दीवार सवाली हो जाती है।
इश्क मुरीद और मुराद के बीच बहता एक सूखा दरिया है जहां दीवानगी को साहिल पर खड़े हो देखा नही जा सकता है इश्क के जुनून को जीने के नंगे पाँव उस तपती रेत पर चलना पड़ता है जिसे दिल की सदा के नाम से जाना जाता है।
मस्तानी की धड़कने एक बार बगावत पर क्या आई उसने इश्क को आयत की तरह पढ़ लिया और इबादत की तरह जिया। बाजीराव सच में असली लड़ाका का था वो दो जंग एक साथ हार गया एक अपने दिल की और दूसरी अपनों की।
काशी की कसक मस्तानी की इश्किया ठसक और बाजीराव का किरदार फ़िल्म में इश्क की ऐसी जुगलबंदी सजाती है कि हम अहा, आह और वाह को बारी बारी दोहरातें है।
बाजीराव मस्तानी इश्क में हिम्मत जूनून और पाकीजगी  का एक ऐतिहासिक दस्तावेज है रूढ़ियों, पूर्वाग्रहों और धर्म के आग्रहों के बीच एक योद्धा के इश्क की बड़ी सीधी सपाट कहानी है।
दिल के हाथों जब रूह मजबूर हो जाती है तब मस्तानी कमली हो बाजीराव की पनाह में आती है जिल्लत के बाद भी उसका यकीन इश्क के पुख्ता होने का ऐसा तावीज़ बनता है जिससे लाख बलाएँ टल सकती है।
बहादुरी और इश्क का जो रिश्ता होता है वही बाजीराव और मस्तानी का है।
संजय लीला भंसाली ने फ़िल्म के कलात्मक पक्ष को इतनी महीनता से गढ़ा कि फ़िल्म देखतें समय हम खुद को मराठा साम्राज्य का एक हिस्सा मानने लगती है। फ़िल्म का फिल्मांकन गजब का मस्तानी दीवानी हो गई गाने में जो सुनहरा पर्दा उन्होंने रचा उसे देख सच में दर्शक मन्त्र मुग्ध हो जाता है। देवदास में पारों और चन्द्रमुखी को तथा बाजीराव मस्तानी में काशी और मस्तानी को एकसाथ नचाने का हुनर केवल भंसाली को ही अता है ये काम केवल वही कर सकते है वो भी बाकमाल।
फ़िल्म का अंत इश्क में मिलनें के लिए तबाह होने का मन्त्र हमारे कान में फूंकता है। इश्क इबादत होने के बावजूद टूटकर जब बिखरता है तब ये बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है।
बाजीराव और मस्तानी फ़िल्म के अंत में कुछ इस तरह से मिलें कि आँखों में धुंधलका छा गया मगर अफ़सोस नही हुआ क्योंकि इससे बेहतर दो इश्कजादों का मिलन हो भी नही सकता था।
काशी का किरदार भी बहुत उम्दा है उसकी आँखों में सतत् बैचेनी देखते हुए भी उसके लिए दुआ और हमदर्दी नही निकलती क्योंकि उस पर हक इश्क में सजदा किए मस्तानी ने बना लिया था।
बाजीराव मस्तानी एक बढ़िया कलात्मक मूल्यों से  भरा हुआ गहरा प्रेम आख्यान है जिसका अंत त्रासद होते हुए भी इश्क के मुरीदों की आँख में पाकीज़ा सूरमा लगा जाता है।