Wednesday, August 17, 2016

बर्फी

'बर्फी' महज़ एक फिल्म नही है बल्कि ये एक जज़्बाती दस्तावेज़ है जिसे दिल बार बार पढ़ना चाहता है। बेहद कम संवादों के मध्य फिल्म मन के अंदर इतना कोलाहल भर देती है कि कई बार पलकें भीग जाती है।
झिलमिल और बर्फी का प्यार हो या बर्फी और मिसेज़ सेनगुप्ता का प्यार दोनों में एक चीज़ कॉमन है वो रिश्तों और जज्बातों की पाकीज़गी। कहीं ये शेर पढ़ा था ' ये सदियों की इबादत का सिला होता है,हर किसी की किस्मत में कहां इश्क लिखा होता है' बर्फी की दोनों नायिका इस मामलें में खुशकिस्मत थी कि उन्हें बर्फी का प्यार हासिल हुआ ये अलग बात है कि बर्फी को हासिल करने की हिम्मत झिलमिल के अंदर ज्यादा थी।
'बर्फी' फिल्म की अंदर की दुनिया जितनी खामोश दिखती है दरअसल वो उतनी ही मुखर है और प्रेम की मौन भाषा को समझने के लिए बर्फी एक उम्दा फिल्म है। बर्फी को देखते हुए साँसों से भी खलल पड़ता है ये दर्शक से इस किस्म की नीरवता चाहती है धड़कनों की हलचल से आँख की नमी बहने की जुर्रत रखती है।
रणबीर कपूर और प्रियंका चोपड़ा की आउटस्टैंडिंग परफॉर्मेन्स है एक्टिंग के मामले में प्रियंका सब पर भारी पड़ी है ऑटिज़्म से पीड़ित लड़की का किरदार क्या कमाल का निभाया है।
बर्फी और झिलमिल दो पतवार की तरह फिल्म में है जो कहीं भी नाव चलाकर उस पार हो जाते है। मिसेज़ सेनगुप्ता का बर्फी को लेकर अनुराग भी अपने आपस एक डिवाइन प्लीजर देता है उनके अंदर की हिम्मत देर से जागती है मगर जब जागती है तो बेपरवाह हो जाती है। यकीनन इश्क ऐसी ही बेपरवाही और जुनून की मांग भी करता है तभी आप इसमें कामिल हो सकते है।
बर्फी का जूता उछाल कर झिलमिल को पुकारना हो या फिर आखिर में झिलमिल का बर्फी को अपने पीछे छिपाना हो दोनों की सीन इश्क की इंतेहा के बेहद जीवंत उदारहण है। फिल्म की एक खासियत यह भी है प्रेम त्रिकोण होने के बावजूद भी फिल्म में तनाव नही है सब कुछ सहज है।
इश्क में साथ जीना और साथ मरना इंसान को वली बना देता है और बर्फी और झिलमिल यकीनन इसके लिए काबिल थे। जो पीछे छूट जाता है वो यादो का कारवां होता है और जो याद करने वाले बच जाते है ये उनकी नियत त्रासदी होती है।
मूक बधिर किरदारों के जरिए बुनी एक क्लासिक प्रेम कथा है बर्फी जब भाषा गौण हो जाती है तब अस्तित्व मुखर हो जाता है फिर वही सहजता भी बसने लगती है। प्यार आदमी को कितना खूबसूरत बना देता है ये बात बर्फी देखकर पता चलती है। इश्क के हिस्से में हमेशा अधूरेपन के किस्से आते है इसलिए मिसेज़ सेनगुप्ता एक अधूरे किस्से की नायिका बन जाती है मगर मेरे ख्याल से उनका अधूरापन भी अपने आप में एक पूर्णता लिए है उनके मन में अंत तक बर्फी के लिए प्रेम उसी संपूर्णता में बना रहता है और वो घर छोड़ते वक्त पल भर के लिए भी नही सोचती कि अब यहां वापसी नही होगी कभी।
हाथ की सबसे छोटी उंगलियों की दोस्ती के जरिए झिलमिल और बर्फी हमें सिखा जाते है कि सबसे गहरे और मजबूत बॉन्ड छोटी छोटी चीज़ों के आपस में अधिकार से जुड़ने से बनतें है। मामूली सी ज़िंदगी की खुशियां आसमां जैसी बड़ी हो सकती है बशर्ते आपके पास सच्चे प्यार करने वाले दोस्त हो ये बात बर्फी देखतें हुए बार बार दिल पर दस्तक देती है।
एक बढ़िया फिल्म जिसको बार बार देखा जा सकता है।