Monday, September 25, 2017

अंजलि पाटिल: खत

अंजलि पाटिल,
तुम्हें पहले चक्रव्यूह में देखा था और अब न्यूटन में देखा। नक्सलवाद से मुझे कोई सैद्धांतिक लगाव नही है और न ही मैं हिंसा का मार्ग उचित मानता हूँ।मगर तुम जब वंचितों की दुनिया का आंतरिक सच डायलॉग डिलीवरी के माध्यम से सिनेमा में रचती हो तो मेरा कवि हृदय नागरिक शास्त्र और लोक प्रशासन का विद्यार्थी बन वास्तव में इस जन और जंगल की समस्या को समझने के लिए आतुर हो जाता है।

मैं जानता हूँ तुम एक मॉडल हो मगर व्यवस्था से पीड़ित किरदार को निभाते वक्त तुम्हारी अभिनय क्षमता बहुत निखर कर सामने आती है। मैं तुम्हें किसी खास रोल में टाइप्ड नही कर रहा हूँ क्योंकि तुम्हारा काम है एक्टिंग करना फिर भी तुम्हारे जरिए एक ज्वलंत समस्या का बेहद वास्तविक चित्र बनता है।
न्यूटन फ़िल्म में तुम मलका नाम की बीएलओ बनी हो और तुम्हारी आँखों मे उम्मीद का जो आकाश दिखाई देता है उसके समक्ष यथार्थ की जमीन थोड़ी पड़ जाती है।

दरअसल, न जाने कब से मनुष्य की एक लड़ाई खुद से चल रही है और उसके टूल बहुत सी चीजें बनती है धर्म,अर्थ,राजनीति और सत्ता के केंद्र मिलकर मनुष्य को मनुष्यता के खिलाफ खड़ा करते है ये लड़ाई अभी और लंबी चलेगी मनुष्य की हताशा की अभी अतिरेक रूप से परीक्षा ली जानी बाकि है।

दंडकारण्य के जंगल मे तुम्हारे जरिए मैं मनुष्य की उस हताशा को पढ़ने की कोशिश करता हूँ जो आदिवासियों के चेहरों पर पुती है मैं पैरा मिलिट्री फोर्स के जवानों के चेहरों से भी गुजरता हूँ वे भी दरअसल सिस्टम का एक टूल भर बन गए है मनुष्य अपनी नस्ल से लड़ रहा है और क्यों लड़ रहा है इसका जवाब वे जरूर जानते है जिनके पास सवालों के जवाब देने की कोई बाध्यता नही है।

फिलहाल, तुम्हारी हंसी में कंकर सी पिसी उदासी को देखकर मैं एक अंतहीन इंतजार के कमरे में पसर गया हूँ जहां मुझे लगता है कि एकदिन सब ठीक हो जाएगा। हालांकि सब ठीक होना अक्सर ठीक होना नही होता है मगर मैं चाहता हूँ जल,नदी,जंगल, झरने,हवा आदि पर मनुष्य अपनी दावेदारी समाप्त कर दें और उन्हें अपने नैसर्गिक रूप से रहने दिया जाए। यदि मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य का भला करना चाहता है तो उसके पीछे नीति की दासता शामिल न हो वो उनके उत्थान के नाम पर जड़ो से काटने का षडयंत्र न हो।

ये सब मेरे मन के सन्ताप है जो मैं तुम्हारे जरिए कह पा रहा हूँ न्यूटन फ़िल्म में तुम एक जगह कहती हो कि आप हमसे कुछ घण्टे की दूरी पर रहते है मगर हमारे बारें में कुछ नही जानते है। यह डायलॉग इस सदी का सच है हम घण्टे ही मिनटों की दूरी पर रहने के बावजूद किसी के बारे में कुछ नही जानते है।

दरअसल हम खुद को भी पूरी तरह नही जानना चाहते है क्योंकि फिर हमें अपने मनुष्य होने पर कुछ कुछ अंशो में शर्मिंदगी जरूर होने लगेगी।
खैर, मैं विषयांतर करके असंगत बातें करने के लिए जाना जाता हूँ इसलिए मैं ताप के प्रलाप की तरह बात तुम्हारी हंसी से शुरू करता हुआ मनुष्य की धूर्तताओं पर आ खड़ा होता हूँ।

अंजलि, हो सकता है भविष्य में हम तुम्हें और ग्लैमरस रोल में देखें मगर फिलहाल तुम्हारी कुछ छोटी-छोटी भूमिकाओं ने बतौर मनुष्य मेरी भूमिका में जरूर इजाफा किया है अब मैं अपने देह पर रेंगती चींटी के प्रति कृतज्ञता का कौशल सीख गया हूँ इसलिए इस बात के लिए मैं तुम्हें थैंक यू जरूर कहूँगा।
खूब आगे बढ़ो और अपनी सहजता से यूं ही हमे यह अहसास कराती रहो कि ये अभिनेत्री कोई करिश्माई किरदार नही है ये हमारे बीच की एक लड़की है जो हमें हमसे बेहतर जानती है।

तुम्हारा एक नूतन दर्शक
जो न्यूटन बिल्कुल नही
डॉ. अजित

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