Friday, November 25, 2016

डियर ज़िन्दगी

'डियर ज़िन्दगी' अच्छी फिल्म है। देखने लायक। खुद के डरों से मिलवाती अंदरूनी लड़ाईयों का इश्तेहार करती फिल्म है। दरअसल ये फिल्म ज़िन्दगी से दोस्ती करने का नुक्ता बताती है वो अतीत के द्वन्द के वर्तमान पर प्रभाव को रेखांकित करती है। प्यार करने के लिए निर्द्वन्द और बेख़ौफ़ ज़िन्दगी चाहिए और जिंदगी से दोस्ती वही कर सकता है जो अपने डरो को विदा कर सके।
अच्छी बात है  अब भारत में ऐसे साइकोलॉजिकल कल्ट विषयों पर मूवी बनी शुरू हो गई है। पेरेंटिंग के रोल और पर्सनलिटी डायनामिक्स पर एक बढ़िया सिनेमेटिक डायलॉग फिल्म शुरू करती है।
डियर जिंदगी देखने के लिए मैच्योर ऑडियंस होना जरूरी है वरना लोग फिल्म के बीच में बोल बोल कर मजा किरकिरा करने से बाज नही आते शायद छोटे शहरों की ही यह दिक्कत हो।
डियर ज़िन्दगी दरअसल जिंदगी के नाम लिखा एक खत है जिसे आप रोज़ अकेले में पढ़ते है फिल्म को देखते वक्त आपको अपनी लिखावट और धूमिल हुए पते को साफ़ साफ़ देखने का अवसर मिलेगा बीच बीच में जहां जहां आँखे नम होंगी समझ लीजिए वो टिकिट चिपकाने का ग्लो है। उम्मीद यह की जा सकती है फिल्म देखकर आप अपने खत ज़िन्दगी के नाम रवाना कर देंगे और दुआ यह है कि आपका कोई खत बैरंग न लौटे।
आलिया भट्ट का शानदार अभिनय है। शाहरुख खान साइकोलॉजिस्ट की भूमिका में अच्छे लगे है, चूंकि मनोविज्ञान मेरा विषय रहा है इसलिए उनको थेरेपिस्ट के रूप में देखकर मुझे और भी अच्छा लगा। रोशार्क (मनोवैज्ञानिक परीक्षण) को फिल्म में देखना अच्छा लगा।
ज़िन्दगी का फलक बहुत बड़ा है उससे आँख मिलाकर बात करने का जो हौसला चाहिए वो हम सब के अंदर मौजूद होता है बस उसे पहचानने की जरूरत भर होती है। डियर जिंदगी देख आप खुद से एक ईमानदार बातचीत कर सकते है एक बच्चे के रूप में खोई हुए चीजों को तलाश सकते है और एक पेरेंट के तौर खुद को प्रशिक्षित कर सकतें है।
गुस्सा,प्यार,डर, एकांत,महत्वकांक्षा इन सब जटिल चीजों को समझने के लिए यह एक फिल्म काफी है। सहज रहने के लिए खुद से मुलाक़ात जरूरी होती है डियर जिंदगी उसी मुलाकात का समन है जो हमें फिल्म देखतें देखतें तामील हो जाता है।
फिल्म में गाने के फिलर के तौर में मौजूद है मगर ठीक ठाक है।
कुल मिलाकर एक देखने लायक फिल्म।

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